बैशाख ०४ गते
हम बालक ही रहली जहिआ
खुब बादल उम्रल जा सगरो
कुछ माथ उँचे कुछ भाव नभे
पसरै मदमस्त करा बहुते ।
जब बादल तू बरसा लयमे
भिजली हम सङ्हतके वयमे
न त सोंच कुछो न विचार कुछो
बस मस्त घुमी तब कौन पुछो ।
गुन तोहर बाबु इआसन ही
सुख बाटइजा सबमे जनही
मन शान्त रहे मुह कान्त रहे
सन शङ्कर ही शुभ शान्त रहे ।
न त राग न द्वेष रहे कनिको
अभिमान गुमान कहाँ तनिको
मन निर्मल निश्छल शान्त रहे
चहुओर सुखे दुख दूर रहे ।
सब यार रहे बस प्यार रहे
सब दोसरके दिलदार रहे
कथि तोख भरोस रहो उँहवा
सब ऐनक रुप रही हँहवा ।
जति हाथ मिले समतोख करी
कुछ ढेर मिलो न त आस धरी
वय सुन्दर एक सुवास रहे
जिनगी खुद खास प्रकाश रहे ।
जखुनी कुछ काम करू गुनली
अपने मनके शिवके सुनली
सङ सङ्हतके नु घुमे चरखा
हर डेङ प्रमोद चुमे हमरा ।
जब बर्सल झर्झर जा शिरसे
समभव सअङ्ग भिजी उरसे
समवेग सुवेग चले घटसे
हर टोल गली कुदली झटसे ।
तन मेघ बने मन बादलके
ठनका ठहके धुन मानरके
हम ध्यान धरी चित्तके पटमे
गणनाथ खुले नयनी नभमे ।
बिजुली बिजुली दिल दिप्त करे
पल चित्र उगे कदुली वनके
अचरा पिअरे शुभ तान खडा
दृग आसिस ला टपकै अदरा ।
कुछ आउर दृश्य चले दृगमे
हरिते गभ धान उगे हृदमे
खुब सुन्दर ऊ रस धार रहे
जनजीवनके सुखसार बने ।
सुनला अरजी अब बादल हे
सुखसे अइसे हमरो पुतके
तब बोर दिहा नु प्रमोद रसे
दिलमे शुभ प्यार अपार बसे ।
परलोक पुगू जदि ई जगसे
तब बादल आस रही मनमे
हमरा लङ सोहर गीत पुगे
गभ रोपइते नभ जौन घुले ।
अठमी तिथि ऊ पछ कृष्ण पुगे
हुन उत्सव ऊ करबोल पुगे
छठ पावन दीप प्रकाश पुगे
फगुआ रङ लाल गुलाल पुगे ।
तब लीन विलीन घुलै नभमे
धर वायु रूपे बहजाएम हे
समतोख रही हमरा बस ई
बसुधापर आएम आस रही ।
सुदामा, सर्लाही