बैशाख ०४ गते
सुना हो बाबु, सुना हो भैया, विदेश नआबा
अपन काम, अपन धाम, छोडके नआबा
बहुत भारी गलती कैली विदेश आबेके
पसेना खुन चुअले बुन तपले आगेके ।
दिन आ रात एके जे लेखा करही परले
केनहु जाऊ उहाँके याद दिलमे बरले
शरीर इहाँ करैअ काम मनमे नेपाल
अपन गाँओ अपन घर कैसन बेहाल ।
अपन काम करेमे लाज लागेके नचाहिँ
घाम न पानी गर्मी आ जाढा न धुप न छाँही
बहुत कडा कानुन हए ओतने कडाइ
भाषा आ भेष खान आ पिन संस्कृति पराइ ।
नहए मान ओहन सान अपना लेखिन
हँसेला डर चलेला डर सभीमे चेकिन
दुखाइ मुडी बोखार लागी न कौनो अपन
दबाइ बिरो सजम सेवा मनेमे दफन ।
नहए मौज तनिको मस्ती बनली मसिन
नहए शान्ति देह आ मन असिन पसिन
करते रहा सुखके खोजी मृग हो तिर्सना
सन्तुष्ट दिल होनाइ प्राप्त मृग ही तिर्सना ।
कहिया पुगी आबेला घरे समय इहाँके
बन्धन मुक्त होबई हम उडम इहाँसे
उडेके भाव अएते मन हर्षित होइअ
रहेके नाम सुनते फेर हर्ष भी रोइअ ।
पुगम देश देखम धर्ती चुमम ऊ माटी
अपन हावा भरम साँस जुराई ई छाती
मिलन होई आकाश धर्ती बिचमे शरीर
मिलम साथी फोरम धर्ती तोरम डँरीर ।
अपन देश सोनाके गाछी पेस्रमसे हिलाबा
प्रेसम बुद्धि सभी जे कोनो माटीसे मिलाबा
फगुआ छठ तिहार दशैँ मिलके मनाबा
विदेशी अतै कामके खोजे देशके बनाबा ।
३ चैत २०७७